नकली धौंपेलु नकली बाऴ,सैंडलु की बणोंटी चाल
————————————————————-
ब्वारी सुनो! दूसरे की नकल पर जिंदगी नहीं चला करती। सिखा सौर ठीक नहीं। नकल करने के साथ-साथ प्रतिभा भी होनी चाहिए। यदि तुम सोचती हो कि मैं प्रियंका तिवारी, दीपा नेगी जैसी यू-ट्यूबर अथवा ब्लॉगर बनकर पैसा कमाऊं और छा जाऊं तो उसके लिए उनके जैसे हाव-भाव, बातचीत का तरीका, अंतर्वस्तु और विषय भी चाहिए। आपको इसके लिए सफलता पहाड़ में ही मिल पाएगी। वहां विषयों और दृश्यों का काल नहीं है।
शहर में आप बेडरूम और अधिक से अधिक छत पर जाकर वीडियो बनाती हो या फिर दो फुट के किचन में पकौड़ी बनाते समय रील बनाती हो या फिर किसी गायक के खुदेड़ गीत पर होंठ चलाकर नकल करती हो। न आपकी भावना झलकती है और न ही पृष्ठभूमि चित्ताकर्षक होती है।
विरह गीतों का युग चला गया है। छह इंच की स्क्रीन ने दुनिया मुट्ठी में कर ली है। परदेस गया पति हर आधे घंटे में वीडियो कॉलिंग में हाल बताता है और दो महीने में घर आता है। यह रामी बौराणी का दौर नहीं रहा। रील, वीडियो पर काम करना है तो पहाड़ में जाइए। वहां ओरिजिनलिटी है। शहर में बनावटीपन है। पहाड़ के कोहरे, झरने,झंगोरा के खेत, जुगाली करती भैंस, देवता के मंडांण के बैकग्राउंड पर वीडियो बनाइए,सब पसंद करेंगे। दर्शक बढ़ेंगे, फॉलोअर बढ़ेंगे। खेती, बागवानी, पशुपालन करते समय, सास-ससुर की सेवा करते समय रील बनाओगी तो इसके दोहरे लाभ मिलेंगे। प्रसिद्धि और लोकप्रियता के लिए विषय, अभिव्यक्ति, वातावरण, देश-काल, अभिव्यक्ति और भाव-भंगिमा महत्त्वपूर्ण है। यदि तुम में थोड़ी भी प्रतिभा है तो नेम-फेम,धन प्राप्त कर लोगी, लेकिन प्रतिभा बिल्कुल भी नहीं तो जग हंसाई होगी। पैसे कमाने के तरीके परिश्रम के साथ अनेक हैं। कला के लिए भगवान ने कुछ ही लोगों को बनाता है। रील वाली ब्वारी बनना है तो रियल की ओर जाना होगा। कहीं ऐसा न हो कि बडा़ गोरुन खाई उजाड़ अर छोटा गोरु का थिंचेन थोबीड़।
-डॉ.वीरेंद्र सिंह बर्त्वाल, देहरादून