Big breaking: सुप्रीमकोर्ट और हाइकोर्ट के तीन फैसलों से धर्म संकट में धामी सरकार
पहले से ही वित्तीय प्रबंधन की चुनौती से घिरी सरकार अदालत का फैसला लागू होने से राजकोष पर पड़ने वाले बोझ के बारे में सोच कर चिंता में है।
सरकारी विभागों व सार्वजनिक उपक्रमों में आउटसोर्स, संविदा, दैनिक वेतन व वर्कचार्ज पर लगे हजारों कर्मचारियों के मामले में हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट से आए तीन बड़े फैसलों के बाद उत्तराखंड सरकार धर्मसंकट में फंस गई है। अदालत ने राज्य के अस्थायी कर्मचारियों को नियमित करने और उन्हें समान कार्य का समान वेतन देने के आदेश दिए हैं। फैसला लागू न करने पर एक तरफ कर्मचारियों के आंदोलित होने का खतरा है तो दूसरी तरफ सरकार फैसला लागू करती है तो राजकोष पर पड़ने वाला संभावित भारी बोझ है।
पहले से ही वित्तीय प्रबंधन की चुनौती से घिरी सरकार अदालत का फैसला लागू होने से राजकोष पर पड़ने वाले बोझ के बारे में सोच कर चिंता में है। यही वजह है कि सरकार ने आउटसोर्स कर्मचारियों के मामले में विशेष अनुमति याचिका पर सुप्रीम कोर्ट के आए फैसले के खिलाफ अब पुनर्विचार याचिका दायर करने का फैसला किया है।
कोर्ट के तीन फैसलों से बढ़ गया दबाव
फैसला एक: हाईकोर्ट ने पिछले दिनों नरेंद्र सिंह बिष्ट व चार अन्य की विशेष अनुमति याचिकाओं की सुनवाई के बाद वर्ष 2013 की नियमावली के तहत 10 साल की सेवा पूरी कर चुके अस्थायी कर्मचारियों को नियमित करने के आदेश दिए। कैबिनेट इसके लिए जुलाई 2024 की कट ऑफ डेट रखने के पक्ष में है।
फैसला दो: नियमित होने से छूट गए वन विभाग के वर्कचार्ज कर्मचारियों को नियमित करने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया है। इस पर कैबिनेट ने मंत्रिमंडलीय उपसमिति बनाई है, जिसकी एक बैठक हो चुकी है।
फैसला तीन : हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने आउटसोर्स कर्मचारियों को समान कार्य का समान वेतन देने व पक्का करने के बारे में फैसला दिया है।
हर महीने बढ़ेगा पांच सौ करोड़ खर्च
वर्तमान में प्रदेश सरकार में 1.60 लाख नियमित कर्मचारी हैं। इनके वेतन पर सरकार सालाना 17,185 करोड़ रुपये खर्च कर रही है। सरकारी सहायता से चल रहे संस्थानों के कर्मचारियों पर सरकार 1,309 करोड़ और आउटसोर्स कर्मियों पर 1,091 करोड़ सालाना खर्च हो रहा है। कई विभागों व संस्थानों में 40 से 50 हजार अस्थायी कर्मचारी हैं। कोर्ट का फैसला लागू होता है तो सरकार पर इन सभी अस्थायी कर्मचारियों के लिए करीब 6,000 करोड़ रुपये का इंतजाम करना पड़ेगा। नियमित होने पर कर्मचारियों के एरियर भुगतान का दबाव अलग बनेगा। इन्हीं आशंकाओं के कारण सरकार हिचक रही है।
सालों से लड़ी जा रही है अदालत में लड़ाई
उपनल और अन्य माध्यमों से कई विभागों में अस्थायी नौकरी कर रहे कर्मचारी कई वर्षों से अदालतों में जंग लड़ रहे है। जिन पदों पर वे काम कर रहे, उन पर उन्हें उसकी तुलना में बहुत कम वेतन मिल रहा है। वे चाहते हैं सरकार उन्हें जब तक नियमित नहीं करती, उन्हें समान कार्य का समान वेतन दे।