जो प्रेमी भक्त अपने प्रियतम भगवान के चरणकमलों का अनन्य भाव से दूसरी भावनाओं आस्थाओं व्रतियों को छोड़कर भजन करता है उससे पहली बात तो यह है कि पाप कर्म होते नही परन्तु यदि कभी किसी प्रकार हो भी जाये तो परमपुरुष भगवान श्री हरि उनके ह्रदय में बैठकर वह सब धो बहा देते हैं और उसके ह्रदय को शुद्ध कर देते हैं
उक्त विचार ज्योतिष्पीठ व्यास आचार्य शिव प्रसाद ममगाईं जी ने रुद्रप्रयाग लस्या उछना गावं में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा के द्वितीय दिवस में व्यक्त करते हुए कहा कि जहाँ दुख तो व्यर्थ हो ही गए सुख भी व्यर्थ हो गए जहाँ सारी प्रकृति व्यर्थ प्रतीत होने लगी सब सांसारिक सुख देखे और व्यर्थ पाए तो धर्म की खोज प्रारम्भ होगी क्योंकि प्रकृति के बाहर और जब बाहर से कोई व्यर्थता का अनुभव करता है तो भीतर की ओर आना शुरू होता है अतएव प्रकृति की ही मांग के लिए यदि आप परमात्मा की ओर जाते हैं तो जानना कि अभी गए नही है जिस दिन आप परमात्मा के लिए ही परमात्मा की ओर जाते हैं उसी दिन जानना की धर्म का प्रारंभ हुआ ।
इस अवसर मुख्य रूप से मंगला देवी रावत प्रबल रावत पूर्व जेष्ठ प्रमुख अर्जुन सिंह गहरवार समाजिक कार्यकर्ता मालगुजार जयेन्द्र सिंह नेगी जी नैन सिंह रावत महावीर रावत धन सिंह रावत अवतार सिंह रावत पुष्कर सिंह रावत मुकेश सिंह प्रधान सोहन सिंह देव सिंह कपूर कथक सिंह दीपा रावत रघुवीर रावत धनवीर रावत महिमानंद ममगाईं शिवराज सिंह विक्रम सिंह दिगम्बर रावत गुड़ु रावत नागेंद्र ममगाईं आचार्य भानु प्रसाद ममगाईं आचार्य संदीप बहुगुणा आचार्य राम प्रसाद ममगाईं आचार्य आशीष ममगाईं आचार्य संदीप ममगाईं आचार्य अंकित केमनी आचार्य अशोक शर्मा आचार्य सुरेश जोशी आचार्य शुक्ला जी आदि भक्त गण भारी सँख्या में उपस्थित रहे।।